Posts

सब दिन होत न एक समाना ।

Image
सब दिन होत न एक समाना ।। एक दिन राजा हरिश्चंद्र गृह, कंचन भरे खजाना । एक दिन भरै डोम घर पानी, मरघट गहे निशाना ।। एक दिन राजा रामचंद्र जी, चढ़े जात विमाना । एक दिन उनका बनोबास भये, दशरथ तज्यो पराना ।। एक दिन अर्जुन अर्जुन महाभारत में,जीते इन्द्र समाना । एक दिन भिल्लन लूटी गोपिका, वही अर्जुन वही बाना ।। एक दिन बालक भयो गोदी मा, एक दिन भयो जवाना । एक दिन चिता जलै मरघट पर, धुवाँ जाता आसमाना ।। कहैं कबीर सुनो भाई साधो, यह पद है है निर्बाना । यह पद का कोइ अर्थ लगावै, होनहार  बलवाना ।। भावार्थ ~  किसी के भी जीवन के सभी दिन एक समान नहीं बीतते । राजा हरिश्चंद्र का एक दिन दिन था जब उनके खजाने में सोना भरा था । परंतु उन्हीं का एक दिन ऐसा आया कि उनका सब कुछ छिन गया और स्वयं काशी में मेहतर के घर पानी भरते रहें और शमशान में लाश जलाने का चिन्ह लिए हुए दिन बिताते और लाश जलाते रहें ।               श्री रामचंद्र का एक दिन था जब विमान पर बैठकर घूमते थे, रथ पर तो चलते ही थे । एक दिन आया जब उनका वनवास हो गया और जंग...

गुरु से कर मेल गँवारा ।

Image
गुरु से कर मेल गंवारा, का सोचत बारम्बारा ।। जब पार उतरना चहिए, तब केवट से मिल रहिये । जब उतरि जाय भवपारा, तब छूटे यह संसारा ।। जब दरशन को दिल चहिये, तब दर्पण माँजत रहिये ।। जब दर्पण लागी काई, तब दरस कहाँ से पाई ।। जब गढ़ पर बजी बधाई, तब देख तमासे जाई । जब गढ़ बिच होत सकेला, तब हंसा चलत अकेला ।। कहैं कबीर देख मन करनी, वाके अंतर बीच कतरनी । कतरनि की गाँठि न छूटे, तब पकरि पकरि यम लूटे ।। भावार्थ - हे  मूढ़ मन ! अहंकार में पड़कर क्या बारंबार सोचता है, सद्गुरु की संगति कर, उनके पास बैठ, उनसे मन मिला मिला और उनके चरणों में श्रद्धा कर । किसी को जब नदी के के पार जाना होता है तब वह मल्लाह के पास जा विनयावनत हो उससे मिलता है । इसी प्रकार जिसे संसार-सागर से पार जाना हो, उसे चाहिए कि वह बोध-वैराग्य संपन्न सद्गुरु की शरण में समर्पित हो जाय । जब साधक सद्गुरु के सहारे से मन के भवसागर से पार हो जाता है, तब उसका यह संसार-प्रपंच छूट जाता है ।                               जब कोई अपने शरीर का चेहरा देखना चाहता...

कबीर साहेब के विषय में महात्माओं और विद्वानों के उद्गार l

Image
कबीर साहेब के विषय में महात्माओं और विद्वानों के उद्गार  l कबीर शब्द का अर्थ होता है महान । कबीर नाम के संत अपने नाम के अनुसार ही महान थे । आज से छ: सौ वर्ष पूर्व उस अंधे युग में कबीर ने कितना तर्कपूर्ण सिद्धान्त रखा था यह सोचकर उस महान पुरुष पर आश्चर्य होता है । उसका निर्णय आज भी उतना ही यथार्थ है जितना उस समय था और आगे भी यथार्थ रहेगा । कबीर किस धातु के बने थे यह एक प्रश्नचिह्न है । कैसा अनोखा, कैसा निष्पक्ष, कैसा बेलाग और कैसा अनासक्त  !  कबीर के जीवन और उपदेश मानवता के शंबल हैं । सद्गुरु श्री अभिलाष साहेब जी "हम बंगालियों ने तो संस्कृत इसलिए अपनायी कि हमारे पास शब्द नहीं थे । अध्यात्म के लिए जितने शब्द चाहिए उतने उतने शब्द बंगला भाषा नहीं दे सकती । पर तुम ( हिन्दी वालों ) ने कबीर जैसे सन्त के रहते संस्कृत क्यों अपनायी? कबीर ने तो हिन्दी भाषा में अध्यात्म की सारी बातें कह दी हैं और सारी शब्दावली तुम्हें दे दी है ।" विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर Kabir is the most revered name in Indian tradition. From Punjab to Bengal and from the Himalaya...

संगति कीजै साधु की

Image
संगति कीजै    साधु की ,   हरै    और की व्याधि l ओछी संगति कूर की ,  आठों पहर उपाधि ll संगति कीजै    साधु की ,   हरै    और की व्याधि l ओछी संगति कूर की ,  आठों पहर उपाधि ll संतों की संगत करो ,   वे दूसरे के मन के विकार एवं पीड़ा को    दूर करते हैं l    निर्दय ,   कायर एवं मूर्ख की संगत करने से   मानो    चौबीसों    घंटे छलावा एवं झगड़े में पड़ा रहना है l मानव-जीवन में संगत का बहुत बड़ा महत्व है l   अधम-से-अधम    लोग    भी सज्जनों तथा संतो की संगत से    ऊंचे    उठ जाते हैं और अच्छे-अच्छे    लोग कुसंगत में पड़कर    अपना पतन कर लेते हैं l    जीवन में जितने दुर्गुण एवंदुर्व्यसन आते हैं ,  प्रायः कुसंगत के कारण और आदमी ऊपर उठता है सुसंगत के कारण l    कोयला    में आग ना होने से    उसको छूने पर वह भले ही ना जलाये ,   परंतु काला दाग ...

चक्की चलती देख के, दिया कबीरा रोय l

Image
चक्की चलती देख के, मेरे नैनन आया रोय l दुइ पाट भीतर आय के, साबुत गया ना कोय ll कबीर देव की यह साखी बहुत प्रसिद्ध है l चक्की दो पाटों की होती है l उसमें अन्न के दाने पीसते हैं l यह संसार मानो विशाल चक्की है l यह निरंतर चलती है l जहां तक दृश्यमान संसार है निरन्तर गतिशील है l इसमें रहने वाले प्राणियों के शरीर तथा सारे पदार्थ अनवरत पीसते रहते हैं l द्रव्य और गति मानो ये दो पाट हैं l इनमें सारा संसार पीसा जा रहा है l जितने भौतिक द्रव्य हैं सबमें गति है और गति जहाँ तक है भौतिक द्रव्य है l द्रव्य और गति यही संसार चक्की के दो पाट हैं जिसमें अनंत विश्व निरंतर पीसा जा रहा है l यहाँ सारे पदार्थ परिवर्तनशील हैं तथा सारे प्राणी मौत के आते ही क्षण-मात्र में इस दुनिया से उठ जाते हैं l ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, व्यास, वसिष्ठ, ईशा, मूसा, मुहम्मद, गोरख, कबीर, दयानन्द, विवेकानन्द बड़ी-बड़ी हस्तियां चली गयीं l फरक इतना ही है कि ये सब अपनी यश-काया से अमर हैं l जिन्होंने अपने मन, वाणी तथा काया को जीतकर संसार से अनासक्ति प्राप्त कर ली वे अपने आध्यात्मिक स्वरुप में स्थिर होकर...

चुनरी काहे न रंगाये गोरी पाँच रंग माँ ll

Image
चुनरी काहे न रंगाये गोरी पाँच रंग माँ ll ll ई चुनरी तोहे सतगुरु दीन्हा, पहिर ओढ़ कर मैली कीन्हा ll जैबो का पहिर गोरी पिया संग माँ, चुनरी    काहे    न... ll ll जब पिया अइहैं लेन गवनवा, एकौ न चलिहैं तोर बहनवा ll दाग   दिखिहैं   तोरे   अँचरन माँ, चुनरी    काहे    न... ll ll कहत कबीर सुनो भाई साधो, ज्ञान ध्यान का साबुन लाओ ll दाग   छुटिहैं   तोरे   अँचरन   का, चुनरी    काहे    न... ll ll भावार्थ – हे मनोवृत्ति ! तूने गुरु के उपदेश रुपी चुनरी को दया, क्षमा, शील, विचार और संतोष के पाँच रंगों में क्यों नहीं रंगाया l अर्थात गुरोपदेश को तूने उक्त सद्गुणों के आचरण में क्यों नहीं ढाला!    यह सत्योपदेश रुपी चुनरी तुम्हें सद्गुरु ने दिया है l तूने इसे पहना-ओढ़ा अवश्य, लोकदिखावा में लगा कि तूने सद्गुरु के उपदेश को धारण किया है; परंतु तूने इसे मलिन ही बनाया है l तूने गुरु के उपदेशों का आदर नहीं किया l हे मनोवृत्ति ! तू किस रहनी से चेतन पुरुष के साथ एकमेक होओगी ! शुद्ध मन...

धर्म क्या है ?

Image
हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी - सभी कहते हैं हमारा धर्म बड़ा तथा दूसरे का धर्म छोटा है; परन्तु ऐसा कहने वाले धर्म के तत्व को नहीं जानते । धर्म का मूल तत्व हिन्दू,  मुसलमान, ईसाई, यहूदी आदि में भिन्न-भिन्न नहीं हो सकता; न तो दाढ़ी, चोटी, खतना-यज्ञोपवीत, माला-चन्दन ही धर्म हैं । ये तो साम्प्रदायिक चिन्ह मात्र हैं । धर्म कहते हैं स्वभाव को । पृथ्वी की कठोरता उसका स्वभाव या धर्म है, जल की शीतलता, अग्नि की उष्णता, वायु की कोमलता उनके स्वभाव एवं धर्म है । इसी प्रकार जीव का, चेतन का एवं आत्मा का स्वभाव तथा धर्म ज्ञान है । अतएव ज्ञान के अनुसार, अन्तरात्मा की आवाज के अनुसार चलना ही धर्म है । कितने लोग कहते हैं कि धर्म-अधर्म एक मान्यता मात्र है; परन्तु ऐसी बात नहीं है । यह ठीक है कि कुछ लोगों द्वारा अपनी कल्पना या क्रिया-पद्धति को धर्म कहा गया है, वह अवश्य मान्यता मात्र है; परन्तु धर्म का वास्तविक स्वरूप होता है । कोई हमारी बहन-बेटी पर कुदृष्टि करे, हमारे धन को छीने, हमारे अंग में कांटे चुभोये, हमें गाली दे, हमारी निन्दा, ईर्ष्या करे, झूठ बोलकर हमें धोखा दे - यह सब हमें बुरा लगेगा,...