चुनरी काहे न रंगाये गोरी पाँच रंग माँ ll
चुनरी काहे न रंगाये गोरी
पाँच रंग माँ ll ll
ई चुनरी तोहे सतगुरु
दीन्हा, पहिर ओढ़ कर मैली कीन्हा ll
जैबो का पहिर गोरी पिया संग
माँ, चुनरी काहे न... ll ll
जब पिया अइहैं लेन गवनवा,
एकौ न चलिहैं तोर बहनवा ll
दाग दिखिहैं तोरे अँचरन
माँ, चुनरी काहे न... ll ll
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
ज्ञान ध्यान का साबुन लाओ ll
दाग छुटिहैं
तोरे अँचरन का, चुनरी
काहे न... ll ll
भावार्थ – हे मनोवृत्ति !
तूने गुरु के उपदेश रुपी चुनरी को दया, क्षमा, शील, विचार और संतोष के पाँच रंगों
में क्यों नहीं रंगाया l अर्थात गुरोपदेश को तूने उक्त सद्गुणों के आचरण में क्यों
नहीं ढाला!
यह सत्योपदेश रुपी चुनरी तुम्हें सद्गुरु ने
दिया है l तूने इसे पहना-ओढ़ा अवश्य, लोकदिखावा में लगा कि तूने सद्गुरु के उपदेश
को धारण किया है; परंतु तूने इसे मलिन ही बनाया है l तूने गुरु के उपदेशों का आदर
नहीं किया l हे मनोवृत्ति ! तू किस रहनी से चेतन पुरुष के साथ एकमेक होओगी ! शुद्ध
मनोवृत्ति ही स्वरुपलीन होती है, अशुद्ध मनोवृत्ति नहीं l
जब चेतन पुरुष तुम्हें आत्मसात करना
चाहेगा, तब तुम मलिन होने से फिसल-फिसल कर उससे दूर ही होती रहेगी l तब तुम्हारा
एक बहाना नहीं चलेगा l गुरु का उपदेश पाकर भी तुमने क्यों अपने को मैला रखा, इसका
उत्तर तुम्हें नहीं सूझेगा ! चेतन देव की दृष्टि में तुम्हारे आंचल के सारे दाग
दिखाई देंगे l
कबीर साहेब कहते हैं कि हे भाई संतो !
सुनो, जब यह मनोवृत्ति सद्गुरुप्रदत्त स्वरूपज्ञान और उसमें अविचल ध्यान का साबुन
लेकर अपने आप पर प्रयोग करेगी तभी सारे दाग धुलकर वह कृतार्थ होगी l
#कहत_कबीर
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Thanks for this! Hari Om
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