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Showing posts from February, 2018

धर्म क्या है ?

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हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी - सभी कहते हैं हमारा धर्म बड़ा तथा दूसरे का धर्म छोटा है; परन्तु ऐसा कहने वाले धर्म के तत्व को नहीं जानते । धर्म का मूल तत्व हिन्दू,  मुसलमान, ईसाई, यहूदी आदि में भिन्न-भिन्न नहीं हो सकता; न तो दाढ़ी, चोटी, खतना-यज्ञोपवीत, माला-चन्दन ही धर्म हैं । ये तो साम्प्रदायिक चिन्ह मात्र हैं । धर्म कहते हैं स्वभाव को । पृथ्वी की कठोरता उसका स्वभाव या धर्म है, जल की शीतलता, अग्नि की उष्णता, वायु की कोमलता उनके स्वभाव एवं धर्म है । इसी प्रकार जीव का, चेतन का एवं आत्मा का स्वभाव तथा धर्म ज्ञान है । अतएव ज्ञान के अनुसार, अन्तरात्मा की आवाज के अनुसार चलना ही धर्म है । कितने लोग कहते हैं कि धर्म-अधर्म एक मान्यता मात्र है; परन्तु ऐसी बात नहीं है । यह ठीक है कि कुछ लोगों द्वारा अपनी कल्पना या क्रिया-पद्धति को धर्म कहा गया है, वह अवश्य मान्यता मात्र है; परन्तु धर्म का वास्तविक स्वरूप होता है । कोई हमारी बहन-बेटी पर कुदृष्टि करे, हमारे धन को छीने, हमारे अंग में कांटे चुभोये, हमें गाली दे, हमारी निन्दा, ईर्ष्या करे, झूठ बोलकर हमें धोखा दे - यह सब हमें बुरा लगेगा, दुख

हाड़ जरै लकड़ी जरै, जरै जरावन हार ll

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हाड़ जरै लकड़ी जरै, जले जलावन हार । कौतुकहारा भी जरै, कासों करों पुकार ।। जब आदमी मर जाता है तब शमशान घाट में ले जाकर लोग चिता रचकर चिता पर लाश को रख देते हैं और  आग लगा देते हैं । चिता में आग लगती है शरीर जल जाता है । इस पर साहेब कहते हैं "हाड़ जरै" जिन हड्डियों से निर्मित शरीर को देखकर बड़ा अहंकार करता था कि मेरा शरीर बड़ा मजबूत है, बलवान है वे पुष्ट हड्डियाँ चिता में जल जाती हैं लेकिन केवल हड्डियाँ नहीं जलती, हड्डियों को जलाने वाली लकड़ियाँ भी जल जाती हैं । जिसने चिता में आग लगायी एक दिन वह आदमी भी जल जाता है । इतना ही क्यों "कौतुकहारा भी जरै" उस शवयात्रा में शामिल लोग जो तमाशा देखने वाले थे, वे कौतुकहार शवयात्री भी एक दिन उसी चिता में जल जाते हैं । कौन बचता है ? सद्गुरु कहते हैं - मैं किससे पुकार करूँ? कौन संसार में ऐसा है जो मुझे बचा सके। कौन किसको बचा सकता है? बचा सकते हैं तो केवल अपने आप को । दूसरा कोई हमारा रक्षक नहीं होगा । -------- सद्गुरु_कबीर _साहेब https://www.facebook.com/SansarKeMahapurush