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Showing posts from March, 2018

चक्की चलती देख के, दिया कबीरा रोय l

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चक्की चलती देख के, मेरे नैनन आया रोय l दुइ पाट भीतर आय के, साबुत गया ना कोय ll कबीर देव की यह साखी बहुत प्रसिद्ध है l चक्की दो पाटों की होती है l उसमें अन्न के दाने पीसते हैं l यह संसार मानो विशाल चक्की है l यह निरंतर चलती है l जहां तक दृश्यमान संसार है निरन्तर गतिशील है l इसमें रहने वाले प्राणियों के शरीर तथा सारे पदार्थ अनवरत पीसते रहते हैं l द्रव्य और गति मानो ये दो पाट हैं l इनमें सारा संसार पीसा जा रहा है l जितने भौतिक द्रव्य हैं सबमें गति है और गति जहाँ तक है भौतिक द्रव्य है l द्रव्य और गति यही संसार चक्की के दो पाट हैं जिसमें अनंत विश्व निरंतर पीसा जा रहा है l यहाँ सारे पदार्थ परिवर्तनशील हैं तथा सारे प्राणी मौत के आते ही क्षण-मात्र में इस दुनिया से उठ जाते हैं l ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, व्यास, वसिष्ठ, ईशा, मूसा, मुहम्मद, गोरख, कबीर, दयानन्द, विवेकानन्द बड़ी-बड़ी हस्तियां चली गयीं l फरक इतना ही है कि ये सब अपनी यश-काया से अमर हैं l जिन्होंने अपने मन, वाणी तथा काया को जीतकर संसार से अनासक्ति प्राप्त कर ली वे अपने आध्यात्मिक स्वरुप में स्थिर होकर

चुनरी काहे न रंगाये गोरी पाँच रंग माँ ll

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चुनरी काहे न रंगाये गोरी पाँच रंग माँ ll ll ई चुनरी तोहे सतगुरु दीन्हा, पहिर ओढ़ कर मैली कीन्हा ll जैबो का पहिर गोरी पिया संग माँ, चुनरी    काहे    न... ll ll जब पिया अइहैं लेन गवनवा, एकौ न चलिहैं तोर बहनवा ll दाग   दिखिहैं   तोरे   अँचरन माँ, चुनरी    काहे    न... ll ll कहत कबीर सुनो भाई साधो, ज्ञान ध्यान का साबुन लाओ ll दाग   छुटिहैं   तोरे   अँचरन   का, चुनरी    काहे    न... ll ll भावार्थ – हे मनोवृत्ति ! तूने गुरु के उपदेश रुपी चुनरी को दया, क्षमा, शील, विचार और संतोष के पाँच रंगों में क्यों नहीं रंगाया l अर्थात गुरोपदेश को तूने उक्त सद्गुणों के आचरण में क्यों नहीं ढाला!    यह सत्योपदेश रुपी चुनरी तुम्हें सद्गुरु ने दिया है l तूने इसे पहना-ओढ़ा अवश्य, लोकदिखावा में लगा कि तूने सद्गुरु के उपदेश को धारण किया है; परंतु तूने इसे मलिन ही बनाया है l तूने गुरु के उपदेशों का आदर नहीं किया l हे मनोवृत्ति ! तू किस रहनी से चेतन पुरुष के साथ एकमेक होओगी ! शुद्ध मनोवृत्ति ही स्वरुपलीन होती है, अशुद्ध मनोवृत्ति नहीं l         जब चेतन पुरुष तुम्हें आत्मसात करना चाह