संगति कीजै साधु की

संगति कीजै  साधु की,  हरै  और की व्याधि l
ओछी संगति कूर कीआठों पहर उपाधि ll



संगति कीजै  साधु की,  हरै  और की व्याधि l
ओछी संगति कूर कीआठों पहर उपाधि ll



संतों की संगत करो,  वे दूसरे के मन के विकार एवं पीड़ा को  दूर करते हैं l  निर्दय,  कायर एवं मूर्ख की संगत करने से मानो  चौबीसों  घंटे छलावा एवं झगड़े में पड़ा रहना है l

मानव-जीवन में संगत का बहुत बड़ा महत्व है l अधम-से-अधम  लोग  भी सज्जनों तथा संतो की संगत से  ऊंचे  उठ जाते हैं और अच्छे-अच्छे  लोग कुसंगत में पड़कर  अपना पतन कर लेते हैं l  जीवन में जितने दुर्गुण एवंदुर्व्यसन आते हैंप्रायः कुसंगत के कारण और आदमी ऊपर उठता है सुसंगत के कारण l  कोयला  में आग ना होने से  उसको छूने पर वह भले ही ना जलाये,  परंतु काला दाग तो लगा ही देता है l  इसी प्रकार गलत आदमी का संग  करने से हम में तत्काल भले ही दोष ना आयें,  परंतु लोगों की दृष्टि से हम गिर तो जाएंगे ही l   एक ने एक से कहा कि मुझे यह बता दो कि  वह किसके साथ बराबर  उठता-बैठता  है,  तो मैं बता दूं कि  उसके आचरण कैसे हैं l आदमी का मन  गीली मिट्टी  के तुल्य है l  वह जैसा सांचा पाता हैवैसा ढल जाता है l  मजबूत मन वाले कम लोग होते हैं जो कुसंगत  पाकर उसमें ना फिसलें l  परंतु यदि कोई बराबर  कुसंगत करता रहेगा तो दृढ़ मन वाला भी फिसल जाएगा l  कुसंगत में प्रेम करना ही बुरी बात है l  यह अलग बात है कि  यदि संयोग से गलत लोगों का संग पड़ जाए,  तो सावधान होकर उनके बुरे प्रभाव से अपने आप को बचा ले,  और जितना संभव हो उनसे अपने आप  को शीघ्र  अलग कर ले l  जो कुसंग में प्रेम करेगा वह पतन से बच नहीं सकता l  कुसंगत से प्रेम करना ही अपने पतन को निमंत्रण देना है l जो अच्छे-अच्छे साधक भी अपने पद से गिर जाते हैं,  उसमें संग-दोष अर्थात कुसंग ही कारण होता है l  बलवान भी कुसंग में प्रेम करने से आज नहीं तो कल,  फिसलेगा ही,  और कमजोर आदमी भी यदि अच्छी संगति में बना रहे तो  वह प्रपंच से बचा रहेगा l

बुराइयों से ज्यादा बुरा एवं पतन  में  कारण बुरा आदमी है l धूप गर्म होती है,  परंतु धूप में तपी बालुका  बहुत ज्यादा गर्म होती है l  बुराइयों में  डूबा बुरा आदमी  अपनी युक्ति-प्रयुक्ति  से समझा-बुझाकर  दूसरों को पतित  करने में कारण  बनता है l  कुसंग वह आलंबन है जो मनुष्य के मन में विकार उत्पन्न करता है l

सदगुरु कबीर ने इस साखी में बताया है कि  सदैव साधु की संगत करो l  साधु का अर्थ केवल साधुवेषधारी नहीं है l  कितने  साधुवेषधारी है जो दुर्व्यसन,  दुर्गुण एवं राग-द्वेष के भंडार बने रहते हैं और निश्चित ही उनकी संगत मनुष्य के पतन में कारण होती है l  अतः साधुवेष  हो या ना हो,  जो शुद्ध बुद्धि वाला एवं पवित्र आचरण वाला  है वही साधु है l  उसी की संगत करने से मनुष्य को सत्प्रेरणा मिल सकती है l सदगुरु कहते हैं कि  साधु की संगत करो l  वे  तुम्हारे मन की पीड़ा को हरेंगे l सच्चे साधु-संतो के दर्शन,  वचन,  संगत एवं वार्तालाप मनुष्य के अज्ञान एवं शोक-मोह  का निराकरण करने वाले हैं l  जिनकी संगत में रहने से मन प्रसन्न रहे,  मनोविकार दूर रहें  और  आत्मशांति  रहे,  उनकी संगत  ही साधु-संगत है l

  जब हम क्रूर  की संगत करते हैं,    निर्दय  और निकम्मे व्यक्ति की संगत करते हैं तथा कायर और मुर्ख  की संगत करते हैं,  तब  हमारे जीवन में पदे-पदे   छलावा एवं धोखा मिलते हैं और मिलते हैं झगड़ा-द्वंद! कायरों की संगत से अपने  में  कायरपन ही  तो  आयेगा l  निकम्मे लोगों की संगत से निकम्मापन आएगा l गलत लोगों की संगत से हमारे मन,  वाणीकर्म बुरी ओर  जायेंगे l  जिसका जीवन दूषित हो जाएगा वह अंदर-बाहर केवल द्वंदग्रसित ही रहेगा l  एक पहर में  तीन घंटे होते हैंआठ पहर में चौबीस घंटे l  कुसंगत में रहने से चौबीसों घंटे मत्थे पर उपद्रव ही  रहता है l  उपाधि का  अर्थ है धोखाछलावा एवं उपद्रव l  कुसंग  करने से यही  फल मिलते हैं l

                                                                   बीजक साखी - २०७

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Comments

  1. कबीर संगत साधु की हरे और की व्याधि
    ओछी संगति कूर की आठों पहर उपाधि।।

    अपने जीवन को संवारना हो तो तुम्हें कुछ नहीं करना है, सिर्फ़ अपने आप को ऊँचे लोगों के बीच डाल दो। जैसे कि गीली लकड़ी खुद से जल नहीं सकती। पर गीली लकड़ी को जलाना है तो उसे जलती हुई सुखी लकड़ियों के बीच रख देने से गीली लकड़ी का गीलापन पहले जलता है और फिर वो लकड़ी भी जल उठती है।

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