हर क्षण दर्शन होता है l
हर क्षण दर्शन होता है कबीर से क्षुब्द होकर एक बार पण्डित तथा मौलवी उनको घेरे हुए थे l ईश्वर को लेकर बहस छिड़ी हुई थी l कोई ईश्वर का निवास मन्दिर में बताता था, तो कोई मस्जिद में l कोई ईश्वर की प्राप्ति माला जपने में बताता था, तो कोई नमाज पढ़ने में l कोई तप करने में, तो कोई सजदा करने में l कबीर साहेब पंडितों तथा मौलवियों दोनों को आड़े हाथ लेते हुए तथा उनके आडम्बर पर प्रहार करते हुए कहते हैं – न जाने तेरा साहब कैसा है ? मस्जिद भीतर मुल्ला पुकारे क्या साहेब तेरा बहरा है l चिंवटी के पग नूपुर बाजे सो भी साहब सुनता है ll पण्डित होय के आसन मारे लम्बी माला जपता है l अन्तर तेरे कपट कतरनी सो भी साहब लखता है ll इस पर क्रुद्ध होकर पण्डित तथा मौलवी दोनों कबीर से पूछ बैठते हैं कि – “बताओ कबीरा, तेरा साहब कैसा है ?” तब कबीर बड़े ही रहस्यमय ढंग से उत्तर देते हैं – आँखे खुली हों या बन्द दीदार उनका होता है l कैसे कहूं तुम्हें मुल्ला जी, साहिब ऐसा होता है ll घट-घट में वह ईश विराजे हर क्षण दर्शन होता है l कैसे कहूं तुम्हें पण्डित जी, ईश्वर ऐसा होता है ll तब वे हठ करते हुए कबीर से कहते हैं – “कबीरा तुम्हें ब