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Showing posts from December, 2017

हर क्षण दर्शन होता है l

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हर क्षण दर्शन होता है  कबीर से क्षुब्द होकर एक बार पण्डित तथा मौलवी उनको घेरे हुए थे l ईश्वर को लेकर बहस छिड़ी हुई थी l कोई ईश्वर का निवास मन्दिर में बताता था, तो कोई मस्जिद में l कोई ईश्वर की प्राप्ति माला जपने में बताता था, तो कोई नमाज पढ़ने में l कोई तप करने में, तो कोई सजदा करने में l कबीर साहेब पंडितों तथा मौलवियों दोनों को आड़े हाथ लेते हुए तथा उनके आडम्बर पर प्रहार करते हुए कहते हैं – न जाने  तेरा साहब कैसा है ? मस्जिद भीतर मुल्ला पुकारे क्या साहेब तेरा बहरा है l चिंवटी के पग नूपुर बाजे सो भी साहब सुनता है ll पण्डित होय के आसन मारे लम्बी माला जपता है l अन्तर तेरे कपट कतरनी सो भी साहब लखता है ll इस पर क्रुद्ध होकर पण्डित तथा मौलवी दोनों कबीर से पूछ बैठते हैं कि – “बताओ कबीरा, तेरा साहब कैसा है ?” तब कबीर बड़े ही रहस्यमय ढंग से उत्तर देते हैं – आँखे खुली हों या बन्द दीदार उनका होता है l कैसे कहूं तुम्हें मुल्ला जी, साहिब ऐसा होता है ll घट-घट में वह ईश विराजे हर क्षण दर्शन होता है l कैसे कहूं तुम्हें पण्डित जी, ईश्वर ऐसा होता है ll तब वे हठ करते हुए कबीर से कहते हैं – “कबीरा ...

कबीर अमृतवाणी ।

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तन को जोगी सब करै, मन को करै न कोय । सहजै सब सिधि पाइये, जो मन जोगी होय ।। सब लोग वेष पहनकर शरीर को योगी बनाते हैं, मन को कोई बिरला ही योगी बनाता है, यदि मन योगी हो जाय, तो सहज ही कल्या...

अवतारवाद ।

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अवतारवाद मनुष्य के मन में हीनभावना उत्पन्न करता है । यहां तक देश और धर्म संकट आने पर अवतारवादी उसके निवारण के लिए स्वयं यत्न नहीं करता । वह सोचता है हम तुच्छ जीवों में क्या ...

मनुष्य के गुणों की विशेषता है ।

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मानुष तेरा गुण बड़ा, माँसु न आवै काज l हाड़ न होते आभरण, त्वचा न बाजन बाज ll हे मनुष्य ! तेरे सद्गुण ही श्रेष्ठ हैं, अन्यथा तेरा शरीर व्यर्थ है l न तेरा मांस किसी के काम आता है, न तेरी हड्डी के आभूषण बनते हैं और न तेरे चाम के बाजे बनकर बजते हैं ll         मनुष्य की विशेषता उसके उत्तम विचारों एवं  सदगुणों में है l यदि उसने मानवीय विचार एवं मानवीय गुणों का अपने जीवन में विकास नहीं किया तो वह पशुओं से खराब है l पशुओं के चाम, हड्डी, मांस, बाल आदि सभी अंग दूसरे के काम आ जाते हैं l पशु अपने जीवनकाल में तथा मर जाने पर भी दूसरों की सेवा में लग जाते हैं l पशु अपने स्वाभाविक कर्म को छोड़कर कोई दुष्कर्म नहीं करते l इसलिए उनके जीवन में नये कर्म बंधन नहीं बनते l पशु किसी की फसल को यदि चरता है तो पेट भर जाने के बाद चरना छोड़ देता है l परन्तु मनुष्य का पेट भरा रहने पर भी वह दुसरे के घर में चोरी करता है, जेब काटता है, मिलावटबाजी, घूसखोरी, चोरबाजारी, जमाखोरी, धोखेबाजी आदि सभी अपराध करता है l        जिन पशु-पक्षियों के जो स्वाभाविक भोज...

रहना है होशियार नगर में ।

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रहना है होशियार नगर में, एक दिन चोरवा आवेगा ।। तोप तीर तलवार न बरछी, नाहीं बन्दूक चलावेगा । आवत जात लखे नहिं कोई, घर में धूम मचावेगा ।। ना गढ़ तोड़े ना गढ़ फोड़े, ना वह रूप दिखावेगा । नगरी से कुछ काम नहीं है, तुझे पकड़ ले जावेगा ।। नहिं फरियाद सुनेगा तेरी, तुझे न कोई बचावेगा । लोग कुटुम्ब परिवार घनेरे, एक भी काम न आवेगा ।। सुख सम्पत्ति धन धाम बड़ाई, त्याग सकल तू जावेगा । ढूँढ़े पता लगे नहिं तेरा, खोजी खोज न पावेगा ।। है कोई ऐसा सन्त विवेकी, हरि गुण आय सुनावेगा । कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, खोल किंवारी जावेगा ।। इस शरीर नगर में सावधान होकर रहो । यहां कहीं मोह-ममता न करो । याद रखो, एक दिन मृत्यु-चोर आयेगा । वह न तोप चलायेगा न तीर, न तलवार चलायेगा न बरछी और न बन्दूक चलायेगा । उसको आते-जाते कोई देख भी नहीं पायेगा । परंतु वह शरीर रूपी घर में उपद्रव मचा देगा । वह शरीर रूपी किला को न तोड़ेगा और न फोड़ेगा और न वह रूप ही दिखायेगा । उसे तुम्हारे शरीर-नगर से कोई प्रयोजन नहीं है । बस, वह तुम्हें पकड़कर ले जायेगा ।             वह तुम्हारी प्रार्थना एवं निवेदन भी नह...