बड़ा वही जिसकी बड़ी बुद्धि एवं बड़े संस्कार हैं ।
कारे बड़े कुल ऊपजै, जोरे बड़ी बुधि नाहिं ।
जैसा फूल उजारिका, मिथ्या लगि झर जाहिं ।।
यदि बड़ी बुद्धि नहीं है तो नहीं है तो बड़ी जाति में पैदा होने से क्या हुआ जैसे जनशून्य जंगल में फूल खिले और और व्यर्थ में झड़ गये, वैसे उत्तम मानव-जाति में जन्म लिया, परंतु आत्मकल्याण और जनकल्याण का कोई भी काम के बिना संसार से चला गया, तो उसका जन्म व्यर्थ गया ।
बड़ा कुल एवं उच्च कुल उच्च कुल एवं उच्च कुल मानव-कुल है । पूरे मानव का एक ही कुल एवं वंश है जो संसार में सर्वोच्च है । मानव के समान संसार में कोई जाति नहीं है । परंतु ऐसे उत्तम मानव-कुल में जन्म लेकर जीव ने क्या कमाया जबकि उसकी बुद्धि मानवीय गुणों से संपन्न एवं विवेकवती नहीं है ! बड़े कुल में जन्म लेने की शोभा तब है जब उसमें बड़ी बुद्धि हो ।
बड़ी बुद्धि का अर्थ है विचार एवं विवेक-प्रधान बुद्धि का होना । जिसमें बड़ी बुद्धि होती है वह अपने आपको बड़ा तथा दूसरे को छोटा नहीं मानता, किन्तु वह दूसरे सब का आदर करता है और स्वयं विनम्र रहता है । बड़ी बुद्धि वाला वह है जो अपने आप के प्रति संयमशील है और दूसरों की यथाशक्ति सेवा करता है । विनयभाव तथा पर सेवा बड़ी बुद्धि का मुख्य लक्षण है । यह जिसके पास नहीं है वह निर्जन स्थल में खिले हुए फूलों के समान है जिनका उपयोग किसी के लिए नहीं हुआ ।
बड़ा कुल उसे भी माना जाता है जिस मानव जाति के परिवार में उत्तम शिक्षा, अच्छे संस्कार एवं सदाचार का बाहुल्य है; और जिस परिवार में इन अच्छे गुणों का अभाव है, उसे निम्न कुल माना जाता है । परन्तु इस मान्यता में आगे चलकर मिथ्या अवधारणा घर बना लेती है । जो उत्तम संस्कारों से अधिक सम्पन्न थे उत्तम कुल वाले कहलाने लगे । आगे चलकर उनमें भ्रष्ट लोग होने लगे, परन्तु वे भी अपने आप को उत्तम कुल का होने का अहंकार करते हैं । दूसरी तरफ जिन परिवारों में उच्च संस्कार नहीं हैं, उन्हें निम्न कुल का कहा जाता है । परन्तु आगे चलकर उनमें शिक्षा, शिक्षा, अच्छे संस्कार तथा सदाचार आ जाने पर भी उन्हें दूसरे लोग नीच कुल का ही मानते हैं । यह घोर अपराध संसार के प्रायः हर क्षेत्र तथा मजहब वालों में है, और इसका अधिक ज्वलंत रूप भारतवर्ष के हिंदू समाज में है । कभी पुराकाल में ब्राह्मण नामधारियों का एक छोटा परिवार था और वह बहुधा शिक्षित, अच्छे संस्कार संपन्न और सदाचारी था । इसलिए वह उच्च कुल कहलाने लगा । आज उनका परिवार बहुत बड़ा है । उच्च शिक्षा, अच्छे संस्कार एवं सदाचार कुछ लोगों में ही हैं, शेष की दशा इतनी गिर गई है कि उसका वर्णन करना बेकार है । फिर भी वे अपने आप को उच्च कुल का मानकर गर्व से छाती फुलाये घूमते हैं । दूसरी तरफ जिसे समाज निम्न एवं शुद्र कुल कहता है उसमें अनेक अच्छे शिक्षा प्राप्त, अच्छे संस्कारयुक्त, भक्त एवं सदाचारी हैं, परन्तु उन्हें आज भी समाज नीच कुल का मानता है । यह धारणा मानवता के प्रति घोर अपराध है ।
सदगुरु कबीर कहते हैं कि उच्च कुल का कहलाने से कोई उच्च नहीं हो सकता । वस्तुतः जिसकी उच्च बुद्धि है, उच्च आचार एवं उच्च संस्कार हैं वही उच्च है । विनयी ही श्रेष्ठ है । अपने को सबसे बड़ा मानने वाला तुच्छ है ।
बीजक साखी - 335
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