हमन है इश्क मस्ताना l

हमन हैं इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ।
रहें आजाद या जग में, हमें दुनिया से यारी क्या ।।
जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-बदर फिरते ।
हमारा यार है हम में, हमन को इंतजारी क्या ।।
खलक सब नाम अपने को, बहुत कर सिर पटकता है ।
हमन गुरु ज्ञान आलिम हैं, हमन को नामदारी क्या ।।
न पल बिछुड़े पिया हम से, न हम बिछुड़े पियारे से ।
हो ऐसी लव लगी हरदम, हमन को बेकरारी क्या ।।
कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से ।
ये चलना राह नाजुक है, हमन शिर बोझ भारी क्या ।।




हम आत्मज्ञान एवं आत्मस्थिति के प्रेम में मस्त हैं, फिर हमें सांसारिक चतुराई से क्या प्रयोजन ! आत्मलीन साधक दुनिया की चतुरता में नहीं पड़ता । हमारा यह दृढ़ ध्येय है कि हम संसार में सदैव स्वतंत्र रहें; हमारे मन में कहीं कोई बंधन न हो, फिर हमें दुनियादारी में मोह करने की क्या आवश्यकता ! किसी व्यक्ति एवं वस्तु में मोहब्बत करने का क्या प्रयोजन !
जिनको यह भ्रम है कि हम अपने परमात्मा से बिछुड़ गये हैं, वे सदैव दर-बदर भटकते फिरते हैं । वे काशी-काबा की खाक छानते फिरते हैं । किन्तु यहां स्थिति सर्वथा भिन्न है । हमें तो पक्का बोध है कि हमारा प्रियतम परमात्मा हममें ही है । आत्मा ही परमात्मा है । मैं और परमात्मा दो नहीं । फिर हम किस अन्य परमात्मा को पाने की प्रतीक्षा करें ?
संसार में बहुत लोग अपने शारीरिक नाम को जगत में प्रसिद्ध करने के लिए अपना सिर पटकते रहते हैं । वे जिस किसी तरह अपने कल्पित नाम को लोक में फैलाना चाहते हैं । हम तो सद्गुरु से उपदेश पायें हैं और भौतिक नाम-रूप से परे आत्मतत्व को जानने वाले हैं । फिर शारीरिक नाम की प्रसिद्धि के चक्कर में क्यों पड़ें ?



प्रियतम हमसे एक क्षण के लिए भी न बिछुड़े और हम प्रियतम से न बिछुड़ें । अर्थात प्रियतम आत्मदेव का कभी विस्मरण न हो, हम सदैव आत्मजाग्रत हों । ऐसी लगन हममें हरदम लगी है । फिर हमें किस बात को लेकर बेचैनी होगी ?
कबीर आत्म-प्रेम में मतवाला है । उसने अपने दिल से दूसरे को दूर कर दिया है । सावधान ! यह रास्ता नाजुक है । इस पर संसार की अहंता-ममता का बोझ लेकर नहीं चला जा सकता । जब हम अपने में मस्त हैं तब दुनिया के अहंकार-ममकार का भार क्यों उठायें ।



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Comments

  1. Really very good and authentic meaning....., thanku for this😊😊

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