सागर जैसा व्यक्तित्व - कबीर दर्शन l



सागर जैसा व्यक्तित्व - कबीर दर्शन 




कबीरदेव का व्यक्तित्व अथाह सागर है । वे लोगों द्वारा अपने जीवन-काल में ही महान संत, सद्गुरु ही नहीं अलौकिक पुरुष के रूप में माने जाने लग गये थे । उत्तरी भारत ही नहीं, पूरे भारत में उनकी सुकीर्ति फैल गयी थी और आस-पास के देशों तक में उनके विचार पहुंच गये थे ।
जिसके माता-पिता का पता नहीं, जाति-बिरादर का ठिकाना नहीं, जो व्याकरण या किसी विषय में आचार्य एवं एम० ए० नहीं और जो भारत के महान धर्मावलंबियों-हिन्दू और मुसलमान तथा उनके धर्मनेता पण्डितों और मुल्लाओं को जीवन भर डांटाता-फटकारता रहा; उनकी त्रुटियों पर व्यंग्य करता रहा, उन्हें भला-बुरा कहता रहा, जो किसी की गलती पर कभी मुरव्वत करना नहीं जाना, जिसकी पैनी दृष्टि सबकी कमजोरियों को तत्काल देखकर उसकी जुबान हजार के बाजार में साफ-साफ कह देती थी; ऐसे कबीर में आखिर क्या आकर्षण है जो उन पर सब कुर्बान होते थे और आज भी उनको सब अपने दिल में बिठा रहे हैं ।


बात साफ है । कबिरदेव मानवता के महान आदर्श थे । सारी परम्पराओं से हटकर सत्य के उपासक थे । वे धर्म के नाम पर सत्य का मूल्य घटाना नहीं जानते थे । वे हिन्दू के नहीं थे, मुसलमान के नहीं थे, वे किसी एक के नहीं थे, इसीलिए वे सबके थे । वे चांद, सूरज, आकाश, हवा के समान सबके थे । कबीरपंथी कहलाने वाले उन्हें अपने कबीरपंथ की डिबिया में नहीं बन्द कर सकते । वे निर्मल, निरपेक्ष, बेलाग, अद्वितीय थे । वे पूरी मानवता के लिए रोते थे, अवतार और पैगम्बर बनकर नहीं, इलहामी किताब एवं खुदाई पैगाम लाकर नहीं; शुद्ध मनुष्य बनकर, वास्तविकता की बात कहकर और अस्तित्व की व्याख्या करके ।
उनके प्रखर ज्ञान, महान प्रतिभा, दिव्य चरित्र, ऊंचे विचार, उदार व्यवहार, प्रगल्भ बुद्धि, स्पष्ट प्रवचन, निष्फिक्र जीवन, निस्संदेह बोध, अखंड वैराग्य और पूर्णत्व प्राप्त जीवन से जनता आकर्षित होकर उनके जीवनकाल में ही उन्हें उच्च संत, सद्गुरु, अलौकिक पुरुष, अवतार आदि तक मानने लगी थी ।



कबीर साहेब की वाणियों में चोटी के संतजन परमतत्व, परमस्थिति एवं स्वरूपस्थिति की खोजकर आत्मिक संतोष पाते हैं । विद्वानजन उनके समय, जन्म, जाति, परिवार, शब्दविन्यास, शैली, कावित्व, विषय-वर्णन आदि का विश्लेषण कर बौद्धिक संतोष पाते हैं । मध्यमवर्ग उनकी वाणियों से सत्य सदाचार को ग्रहणकर जीवन सुधार करता है । चरवाहे, हरजोते 'कहैं कबीर सुनो भाई साधो' का आलाप करके मस्ती पाते हैं । भीख मांगने वाले उनकी वाणियों को गाकर लोगों के मन को रिझा देते हैं । कबीर की अटपटी वाणी में कैसी चटपटाहट है, कैसा आकर्षण है ! सोचते ही बनता है ।



सद्गुरु कबीर की महिमा बहुमुखी है । उनकी वाणी भी बहुमुखी है । उसमें सबको आश्रय मिल जाता है । कबीर देव आत्मनिष्ठ अंतर्मुख पारखी तो हैं ही, ब्रह्मवादियों के ख्याल से ब्रह्मवादी हैं, आर्यसमाजियों के विचार से आर्यसमाजी, सूफियों के ख्याल से सूफी, वैष्णवों के ख्याल से वैष्णव, यहां तक कि अवतारवाद तक के समर्थक । योगियों की दृष्टि में महान योगी । कवि, समाज-सुधारक एवं मानव एकता के शंखनाद करने वाले तो हैं ही, समाजवादियों के ख्याल से वे समाजवादी एवं शुद्ध कम्युनिष्ट हैं । डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने एक बार कबीर साहेब की विशालता पर हंसते हुए मुझसे कहा था "हाथी के पांव में सबकै पांव - कबीर साहेब में सब समा जाते हैं ।"

#कबीर_दर्शन


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