फलित-ज्योतिष, शकुन-अपशकुन तथा स्वप्न-विचार l
फलित-ज्योतिष, शकुन-अपशकुन तथा स्वप्न-विचार l
गणित-ज्योतिष तो ठीक है जिससे सूर्य-चन्द्र ग्रहण आदि का विचार किया जाता है; परन्तु फलित-ज्योतिष भ्रांतिमूलक है और इससे लोगों में अंधविश्वास तथा कायरता बढ़ती है l किसी को कोई तकलीफ हुई तो सोखा भूत-बाधा बताते हैं और पंडित ग्रह-बाधा l शनि, रवि, मंगल आदि ग्रह हैं जो आकाश में हमसे लाखों-करोड़ों मील दूर रहते हैं और वे जड़-कणों के पिण्ड निरे जड़ हैं l उनका मनुष्यों पर कुपित होने तथा कृपा करने की बात सर्वथा निरर्थक है l फिर पंडित लोग अपनी पूजा से ग्रहों को शांत करा देते हैं यह और निरर्थक है l सूर्य एक ग्रह है l जेठ की उसकी प्रचंड गर्मी को यदि पंडित अपनी पूजा से यदि शांत करा दें तो मान लिया जाये कि इनकी ग्रह-पूजा सफल होती है; परन्तु यह सब कुछ होने वाला नहीं l ये ग्रह भी अजीब हैं जो केवल हिन्दुओं से दुश्मनी रखते हैं और उन्हीं पर कुपित होते हैं, इसीलिए हिन्दुओं को ग्रह-शांति के लिए पंडितों से पूजा करानी पड़ती है और गैर-हिन्दू – मुसलमान, इसाई, यहूदी आदि का वे कुछ नहीं कर पाते l तभी तो इनको शांत कराने का झगड़ा उनके यहाँ नहीं है l वैसे पूरा संसार में सभी वर्ग के लोग इस भ्रांति में पड़े हैं l
ग्रह का अर्थ जो ग्रहण कर ले, पकड़ ले और वे हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, राग, द्वेषादि l इन ग्रहों की शांति के लिए हम भक्ति, वैराग्य, सत्संग, सद्ग्रंथों का स्वाध्याय, साधना आदि करें l इन उपायों से इन ग्रहों का शांत होना स्वाभाविक है l अतएव हम विचार रुपी पूजा द्वारा हृदयाकाश के कामादि ग्रहों को शांत करें जो संभव है, आकाश के शनि, रवि आदि ग्रहों से न हमारी कोई हानि है और न उन्हें शांत करने का उपाय या प्रयोजन है l कबीर साहेब ने कहा है “ऐ पंडित, मैं तुमसे पूछता हूँ कि किस क्षण काम-क्रोधादि द्वारा हृदय में ग्रहण लगता है l इन्हें शांत कराने की चेष्टा करो l यदि हृदय-ग्रहण का रहस्य नहीं जानते हो, तो तुम्हें, तुम्हारे गुरु ने क्या बताया है या तुम गुरु बनकर शिष्यों को क्या बताते हो ?”
हिन्दू-समाज के संभ्रांत घरानों में पैदा होने वाले बच्चे आये दिन सत्तइसा में पड़ते रहते हैं l पंडित जी बताते हैं बच्चा सत्तइसा में पड़ गया है l इसको अगर इसका पिता देख लेगा या इसकी आवाज तक सुन लेगा तो उसका अनिष्ट है l जो बच्चा अभी पैदा हुआ है और जिसने अभी कोई अपराध नहीं किया है, उसे पंडित लोग अपराधी सिद्ध कर देते हैं l इसकी आड़ में है उनसे पूजा कराना तथा धन प्राप्त करना l उन्हीं दिनों के पैदा हुए इसाई-मुसलमान आदि के बच्चे सत्तइसा में नहीं पड़ते और न उन्हें उनके लिए पूजा कराने की जरुरत पड़ती है l ये सत्तइसा, मूल-गढ़ंत आदि केवल ढ़कोसला हैं l
किसी के घर में कोई व्यक्ति मर गया तो पंडित लोग उसका घर ही नहीं, कुल-परम्परा को अशुद्ध घोषित कर देते हैं l उसके यहां दशगात्र, तेरही, सोरही आदि हो जाने पर उसका घर शुद्ध मानते हैं l अर्थात् जब वह काफी धन अपने घर से खर्च कर देता है, तब शुद्ध होता है और इधर जितना धन ब्राह्मणों को देता या खिलाता है वह सब उसके पितर को मिलने की बात बतायी जाती है जो केवल अंधविश्वास है l मनुष्य को चाहिए कि वह जो कुछ कमाये अपने तथा परिवार की रक्षा करते हुए उसे लोकमंगल के कार्य में लगाये l बहुत धन कमाकर बच्चों के लिए छोड़ना बहुत गलत है l इससे लडके मुफ्त का धन पाकर उसका दुरूपयोग करते हैं तथा कर्म से हीन और आलसी बनते हैं l इसलिए निर्वाह के अतिरिक्त धन धर्म-परोपकार में लगाना चाहिए जिसमें सार्वजनिक मंगल है l यदि पिता अधिक धन छोड़कर मर जाये तो पुत्र का कर्तव्य है कि वह उसका उचित अंश लोकमंगल कार्य में दान कर दे l वस्तुतः श्राद्ध का यह असली स्वरुप है l
दायीं, बायीं आँख या अंग के फड़कने; तेली, विधवा, काना आदि देखने, बिल्ली आदि का रास्ता काट देने, छींकने, छूंछे घड़े देखने, दूध, गाय, मुरदा आदि देखने से शकुन-अपशकुन मानकर भला-बुरा होने की मान्यता एक पागलपन है जो समाज पर हजारों वर्षों से लदी है l रात में झाड़ू लगाने पर माया चली जाती है l इसका मतलब यह है कि अंधियारे में झाड़ू से कोई जरुरी चीज कचड़ा में जा सकती है l यदि बिजली आदि का पूर्ण प्रकाश है तो झाड़ू लगाने में कोई बुराई नहीं l किस दिन बाल बनवाना, किस दीन नहीं बनवाना, नये बरतन या कपड़े किस दिन उपयोग करना, किस दिन किस दिशा की ओर जाना, किस दिन किस दिशा के लिए दिशाशूल या योगिनी है आदि मानना मन की एक महाभ्रांति है जो बड़े कहलाने वालों ने हमारे ऊपर हजारों वर्षों से लाद रखा है l और इतना ही नहीं, स्वप्न पर बड़े लम्बे-चौड़े विचार किये गये हैं l स्वप्न जाग्रति के संस्कारों के विकृत प्रतिबिम्ब हैं, उनमें कुछ हानि-लाभ नहीं l स्वप्न के भला-बुरा होने से हमारा कुछ नहीं बनता-बिगड़ता l बस, वर्तमान जागृति में हमें बुरे कर्मों से बचकर भले में लगे रहना चाहिए l इस प्रकार की सारी मानसिक दासता, भय, कायरता तथा गलत संस्कारों को सर्वथा छोड़कर स्वस्थ मन वाला होना चाहिए l
लग्न-मुर्हुत इसी प्रकार सारहीन हैं l कितने ही ज्योतिषाचार्यों की लडकियां विवाह के बाद से ही विधवा हो जाती हैं l उन ज्योतिषाचार्यों को यही पता नहीं चलता कि जिनको हम अपने दामाद चुनते हैं वे विवाह के बाद ही मर जायेंगे l लखनऊ के एक ज्योतिषी पंडित अपनी लडकी के लिए वर खोजते-खोजते इतने दिन बीता दिये कि लड़की की उम्र सत्ताईस (27) वर्ष की हो गयी l वे सदैव लड़की और लड़के की कुण्डली मिलाते रहे और उनके न मिलने से लड़का छोड़ते रहे l अंततः लड़की की 27 वर्ष की उम्र में एक लड़के से उसकी कुण्डली खूब मिली l पंडित जी बहुत प्रसन्न हुए कि भले लड़की की शादी में देरी हुई; परन्तु अंततः लड़का ऐसा मिला जिसकी कुण्डली लड़की से अच्छी तरह मिलती है l शादी ठनी l शादी की रात को जब विवाह के रस्म को पूर्ण करके वर जनवास में जाकर खा-पीकर सोया, तो दो घंटे में उसका प्राणान्त हो गया l यह है कुण्डली मिलने तथा फलित ज्योतिष का धोखा l सद्गुरु कबीर कहते हैं “गुरु वसिष्ठ जैसे महान ज्ञानी ने विश्वामित्र एवं सतानन्द से मिलकर सीता और राम की शादी का लग्न शोधा था और सूर्य मंत्र की दीक्षा उन्हें दी गयी थी; परन्तु जो सीता श्रीराम जी से ब्याही गयीं उन्हें जीवन में पल मात्र भी सुख न मिला l”
सूरदास जी महाराज भी कहते हैं “गुरु वसिष्ठ जैसे ज्ञानी पंडित ने बड़ी सावधानी से राम-सीता का लग्न रखा, परन्तु दशरथ का मरण और सीता का हरण, विपत्ति-पर-विपत्ति आती रही l” गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज भी इस लाइन में बोल पड़ते हैं “जन्म, मुर्हूत और ग्रहयोग आदि का कोई महत्व नहीं है, जिसको राम अनुकूल हैं उसको सब अनुकूल हैं l” वस्तुतः अपने कर्मों की पवित्रता ही राम की अनुकूलता है l
शुद्धज्ञान और सदाचार में चलने वाले के लिए कोई भय नहीं l अतएव मनुष्य को चाहिए कि वह मिथ्या धारणाओं को छोड़कर सत्य में प्रतिष्ठा हो l
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