तंत्र-मंत्र एवं भूत-प्रेत पर कबीर साहेब के विचार l



भूत-प्रेत मंत्र-तंत्रादि का खंडन 

यह भूत-प्रेत की कल्पना जो जंगली-युग की देन है, आज भी इससे मनुष्य का पिंड नहीं छूटा है l अशिक्षित और अल्प-शिक्षित ही नहीं चारों वेद, छहों शास्त्रों के विद्वान एवं अंग्रेजी आदि कई भाषाओं के पंडित भी उसी प्रकार नादान हैं l अंधविश्वास और भ्रांतिधारणा में पंडित और मूढ़ एक समान हैं l मिथ्या विश्वास में पड़े हुए अनपढ़ जितना नादान है, पढ़ा-लिखा भी उतना ही l अशिक्षित तो केवल मिथ्याविश्वास को मन में जमाये रहता है; परन्तु शिक्षित अनेक युक्तियों तथा वैज्ञानिक हथकण्डों से मिथ्या धारणाओं को सत्य सिद्ध करता है l 

भूत-प्रेत की योनि होती, तो उनके बाल बच्चे देखने में आते l उनके विवाह-शादी के रस्मोरिवाज तथा उनके व्यवहार-धंधा का भी पता लगता l उनके मरने पर उनकी लाशें भी देखने को मिलतीं, परन्तु यह सब कुछ नहीं दिखता l सद्गुरु कबीर कहते हैं “यह भूत का भ्रम सब लोगों को भटका रहा है l जो मिथ्या भूत-प्रेतों के मानने और पूजने वाले हुए वे सब अपने को अन्धविश्वास के गड्ढे में गिराये l भूत के न सूक्ष्म शरीर है न प्राण और न जीव l यह केवल कल्पना और भ्रांति का रूप है l करोड़ों-करोड़ों लोग इस मिथ्या विश्वास में सिर पटक रहे हैं l हे मनुष्य, तू मिथ्या भूत की पुजाई में बकरी-मुरगियों के गला काटता है; परन्तु ध्यान रख, इसका बदला तुझे मिलेगा l हे मनुष्यों, भूत को मानने और पूजने से तुम्हारे मन में भूत-प्रेत बने हैं, वास्तविकता में उसका कोई अस्तित्व नहीं है l’’

जीव के साथ लगे हुए सूक्ष्म शरीर में केवल संस्कारों को ग्रहणकर गमनागमन कराने की शक्ति है l केवल सूक्ष्म शरीर युक्त जीव दूसरे को तब तक सुख-दुःख नहीं दे सकता जब तक वह स्थूल शरीर न धारण करे l और स्थूल शरीर जीव जहाँ भी धारण करेगा वहां वह सबके सामने प्रत्यक्ष होगा l भूत भैंसा-हाथी आदि के शरीर संकल्प मात्र से धारण करके लुप्त हो जाता है यह अनाड़ियों द्वारा फैलाया हुआ भ्रम है l जहां दिन में भूत-प्रेत नहीं हैं वहां रात में कहां से आ जायेंगे ? अपने मन में शंका होने से एकांत में भय उत्पन्न होता है जो अपने मन का ही विकार है l मन:कल्पना को छोड़कर भूत का कोई अस्तित्व नहीं है l 

लोग कहते हैं कि मैंने भूत-प्रेत देखे हैं l वस्तुतः कभी-कभी दृष्टि-दोष, धुंधुलका आदि के कारण कुछ-का-कुछ दिख जाता है l वह भूत नहीं केवल भ्रम है l प्रेत का अर्थ जो जीव शरीर को छोड़कर चला गया और कुछ समय बीत जाने पर वही भूत (बीता हुआ) हो गया l भूत-प्रेत कोई योनि नहीं l
पुत्र-धन की प्राप्ति के लिए, रोग कटने के लिए, दूसरे मनुष्य को वश में करने के लिए तथा हानियों से बचने के लिए सोखा-ओझा, बैगा-गुनिया के पास झड़वाना-फुंकवाना पूर्ण अज्ञान है l ये सोखा-ओझा लोग भभूत आदि में फूंकते और थूकते हैं और वही भभूत लोग चाटते हैं जो महाअशुद्ध है l झाड़ने-फूंकने से कुछ नहीं होता l एक मनोवैज्ञानिक असर पड़ना अलग बात है l परन्तु इससे अच्छा तो यह है कि भूत-प्रेत, झाड़-फूंक माना ही न जाये, तो उसी प्रकार के कष्ट ही नहीं होंगे l कोई कष्ट होगा तो उसकी निवृत्ति संयम, चिकित्सा एवं विवेक से की जायेगी l 

सांप-बिच्छु के काट-छेद लेने पर झाड़-फूंक करवाना भी अल्पज्ञता ही है l क्योंकि विष द्रव्य होता है जो रक्त के साथ घुल जाता है l वह छू मंतर करने से कैसे दूर हो जायेगा ! जहां झाड़-फूंक से सर्प या बिच्छू का विष उतरता हुआ प्रतीत हो, वहां समझना चाहिए की सांप-बिच्छू जहरीले नहीं थे, या झाड़ने वाले ने झाड़-फूंक के साथ कोई दवाई का प्रयोग किया है l सांप-बिच्छू काटने छेदने पर कटी जगह में तुरन्त आपरेशन करना चाहिए और फिर दवा करना चाहिए l झाड़-फूंक बिलकुल अज्ञानमूलक है l

मंत्र शब्दमय है, यंत्र पदार्थमय तथा तंत्र टोटका को कहते हैं l अभिप्राय यह है कि किसी प्रकार की शब्दयोजना मंत्र है, षटकोण, अष्टकोण आदि बनाकर ताबीज आदि में पहनाते हैं यह यंत्र है और गेहूं के आटे का मनुष्य पिंड बनाकर उसे जला देने पर आदमी मौत से बच जायेगा आदि टोटका है l ये तीनों केवल भ्रम है l राय, सम्मति, उपदेश आदि मंत्र है और ये काम करते हैं l छूमंतर का कोई मतलब नहीं होता l

जादू-टोना भी इसी प्रकार झूठे हैं l हाथ की सफाई, बात की सफाई, वस्तु की बनावट, दवाई आदि से जादूगर कुछ-का-कुछ दिखाते हैं l उनके हथकंडे होते हैं जो हम समझ नहीं पाते l मंत्र से वे कुछ भी नहीं बना सकते l इसे वे स्वयं भी बताते हैं l कोई स्त्री या पुरुष दूसरों को टोना मार देते हैं, जिससे लोगों के खून कट-कट कर गिरने लगते हैं, यह मानना भी केवल भ्रम है l टोना नाम की कोई चीज नहीं l इस प्रकार भूत-प्रेत, झाड़-फूंक, मंत्र-तंत्र-यंत्र, जादू-टोना सब मन:कल्पना की सृष्टि है, अतएव इन भ्रांतियों से रहित होना चाहिए l सद्गुरु कहते हैं –

मंत्र तंत्र सब झूठ है, मत भरमो जग कोय l
सारशब्द जाने बिना, हंसा गया बिगोय ll 



Comments

  1. भुत प्रेत होते हैं ये मेरा अनुभव है कबीर साहेब स्वयं को भगवान मानते है लेकिन उनको भी पता नहीं है भगवान के बनाये सृष्टि में भुत का क्या अनुदान है

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  2. साधु लोग बल ,धन चुराये कबिर करें निन्दा मुस्लिम कहे अल्लाह, तो तुलसीदास जी कहे राम नाम ही काटे सब दुखों का फंदा

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