भूला लोग कहैं घर मेरा l




भूला लोग कहैं घर मेरा l
जा घर में तू भूला डोले, सो घर नाहीं तेरा ll
हाथी घोड़ा बैल बाहना, संग्रह कियो घनेरा l
बस्ती मा से दियो खदेरा, जंगल कियो बसेरा ll
गाँठी बाँधि खर्च नहिं पठयो, बहुरि न कियो फेरा l
बीबी बाहर हरम महल में, बीच मियाँ का डेरा ll
नौ मन सूत अरुझि नहिं सुरझै, जन्म जन्म उरझेरा l
कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, यह पद का करो निबेरा ll



वे लोग गहरी भूल में हैं जो यह कहते हैं कि यह घर मेरा है l ध्यान रखो, जिस घर में तुम भूले-भूले घूम रहे हो, जिसके अहंकार में तुम इतराते हो, वह तुम्हारा नहीं है l तुमने हाथी, घोड़े, बैल तथा अनेक वाहन इकट्ठे कर लिये l परंतु ध्यान रखो, एक दिन तुम बस्ती में खदेड़ दिये जाओगे और तुम्हारा स्थायी निवास जंगल में एवं श्मशान में हो जायेगा l

जब तुम इस संसार से चले जाओगे, तब घर वालों को न कुछ भेज सकोगे और न वे तुम्हारे लिए भेज सकेंगे और न तुम स्वयं आकर कुछ ले या दे सकोगे l ऐसा है यह झूठा संबंध l तूने तो अपनी बीबी को बाहर निकाल दिया और घर में वेश्या को लाकर बसा लिया l अर्थात तूने मन से सद्वृत्ति को निकाल बाहर किया और उसमें दुष्प्रवृत्ति को लाकर टिका लिया l जीव ने अपना डेरा गलत संस्कारों में जमा लिया l इसका फल यह हुआ कि नौ मन सूत उलझ गया l अर्थात पांचों विषयों में मन, बुद्धि, चित्त तथा अहंकार डूब गये और ये जन्म-जन्मांतर तक उलझते ही रहे l कबीर साहेब कहते हैं कि हे संतों ! इस पद का निर्णय करो l अपने मन को सांसारिक विषयों से हटाकर अपने स्वरुप में स्थित होओ l


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