स्वर्ग धरती पर है l





यहाँ   ई  सम्मल  करिले, आगे   विषई   बाट ।

स्वर्ग बिसाहन सब चले, जहाँ बनियाँ न हाट ।।


मानव-जीवन कर्म -भूमिका है । यहीं कर्मों का निर्माण तथा ज्ञान द्वारा कर्मों का अभाव भी होता है । मानव जीवन में ही विवेकबुद्धि है । यहीं धर्म का शंबल एवं अच्छे संस्कारों की पूंजी बनायी जा सकती है । मनुष्य-शरीर के बाद अन्य पशु आदि योनियों में तो केवल विषय-सेवन का ही रास्ता है । पशु-पक्षी आदि तो केवल पेट भरने की क्रिया करते हैं और प्रजनन करते हैं । पेट और भोग के अलावा वहां कुछ संभव ही नहीं है । अतएव हमारे मानव जीवन की सफलता पेट भरने और बच्चा पैदा करने में नहीं है, किन्तु सत्संग, विवेक, परसेवा, स्वरूपविचार आदि में रमने में है ।

पौराणिक कल्पनाओं के आधार पर कुछ लोगों की यह धारणा है कि गंगादि नदियों में नहाकर, तीर्थों में निवास कर एवं मूर्तियों के दर्शन कर तथा अमुक मंत्र एवं नाम जपकर हम स्वर्ग-लाभ करेंगे। स्वर्ग में भगवान के पास पहुंचकर कृतार्थ हो जायेंगे । परन्तु यह सब बच्चों का मनोरंजन मात्र है । सद्गुरु कहते हैं "स्वर्ग बिसाहन सब चले, जहाँ बनियाँ न हाट।" वहां न तो बनिया है और न बाजार। अर्थात न कहीं स्वर्ग है और न वहां कोई भगवान ।

स्वर्ग वहां नहीं है जहां पौराणिक लोग कल्पना करते हैं । वह तो यहीं है । इसी धरती पर विवेक-वैराग्यसंपन्न सद्गुरु भगवान हैं । संत एवं सज्जन लोग देवता हैं और सत्संग स्वर्ग है । हमें स्वर्ग धरती पर उतारना होगा । उतारना क्या#धरती_पर_स्वर्ग_है_ही ।

सद्गुरु कबीर का सारा ज्ञान ताजा, व्यवहारिक और तथ्य की धरती पर अवलंबित है । वे कहते हैं "यहां ई सम्मल करिले" इसी धरती पर स्वर्ग को बसा लो। आकाश में कोई स्वर्ग नहीं है ।

तुम यह मानो कि तुम्हारा घर या आश्रम स्वर्ग है । उसमें रहने वाले सारे सदस्य देवता हैं । सुबह नींद खुलते ही जिन लोगों पर दृष्टि पड़े उन्हें देवता के रूप में देखो और उनका श्रद्धा, आदर एवं प्यार से सत्कार करो । सबसे मीठा बोलो, मीठा व्यवहार करो । घर, दुकान, दफ्तर, कारखाना, खेत तथा सड़क पर परिवार, ग्राहक, नौकर, स्वामी एवं जनता के रूप में जो मिलें, उन्हें देवी-देवता समझो । उनके साथ सुन्दर व्यवहार करो, तो देखोगे यह संसार स्वर्ग बन जायेगा । कम-से-कम तुम ऐसा व्यवहार करना सीखो, तो तुम्हारे लिए सर्वत्र स्वर्ग ही मिलेगा ।

बीजक साखी - 9
#सद्गुरु_कबीर_साहेब

व्याख्याकार - Sadguru Shri Abhilash Saheb Ji


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