मेरो मन कब भजिहो सतनाम l

सो मोरे मन, कब भजिहो सतनाम ll
बालापन सब खेल गमायो, ज्वानी में व्यापो काम l
बृद्ध भये तन काँपन लागे, लटकन लागो चाम ll १ ll
लाठी टेकि चलत मारग में, सह्वो जात नहिं घाम l
कानन बहिर नयन नहिं सूझे, दाँत भये बेकाम ll २ ll

घर की नारि विमुख होय बैठी, पुत्र करत बदनाम l
बरबरात है बिरथा बूढ़ा, अटपट आठो जाम ll ३ ll
खटिया से भुइं पर कर दैहैं, छूटि जैहैं धन धाम l
कहैं कबीर काह तब करिहो, परिहैं यम से काम ll ४ ll




भावार्थ - हे मन ! सत्य नाम का भजन कब करोगे ! पूरा बालपन खेलने में समाप्त हो जाता है, जवानी में काम-वासना के वश रहता है, बुढ़ापा में शरीर के अंग कांपने लगते हैं और चाम ढीला होकर लटक जाता है l वह लाठी के सहारे मार्ग चलता है और उससे धूप सहा नहीं जाता l कान बहरे हो जाते हैं, नेत्र ज्योतिहीन हो जाते हैं और दांत उखड़ जाते हैं l जो रहते हैं वे भी निरर्थक हो जाते हैं l

बुढ़ापा में घर में रहने वाली पत्नी भी विरोधी बनकर बैठ जाती है l पुत्र बदनाम करता है कि यह बूढ़ा आठों पहर निरर्थक ही बकता रहता है l धीरे-धीरे कहिए या तीव्र गति से कहिए, मौत का दिन आ जाता है और मरणासन्न व्यक्ति को लोग खाट से उतारकर जमीन पर लेटा देते हैं, फिर तो उसके सारे धन-धाम छूट जाते हैं l कबीर साहेब कहते हैं कि हे प्राणी ! इसके बाद तुम्हारा क्या कार्यक्रम होगा ! मोह में गाफिल आदमी का तो यमराज से ही सामना होगा l यमराज है वासना l

सतनाम-सतनाम जपना उसी प्रकार एक सात्विक जप है जैसे ॐ, राम आदि का जप l किसी भी पवित्र भाव वाले नाम तथा मंत्र का जप करने से मन में कुछ –न-कुछ स्वच्छता आती है l वस्तुतः आत्मस्मरण ही सच्चा भजन है l अपना आपा, आत्मा, स्वचेतन स्वरुप परम सत है जो मुझसे कभी अलग नहीं हो सकता l अतएव आत्मस्मरण, अपने आप में पूर्ण जाग्रत रहना ही सच्चा सतनाम एवं राम नाम जप है l जो यह काम नहीं करता वह वासनाओं के हाथ बिका संसार में भटकता रहता है l

#कहत_कबीर

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