बुद्धि के सागर धूर्तों से सावधान !
सायर बुद्धि बनाय के, बायें बिचक्षण चोर l
सारी दुनियाँ जहंडे गई, कोई न लागा ठौर ll108ll
सारी दुनियाँ जहंडे गई, कोई न लागा ठौर ll108ll
जीवों के ज्ञानधन एवं मानवता की चोरी करने वाले कुपथगामी विद्वानों ने अपनी बुद्धि को समुद्रवत विशाल बनाकर एवं नाना भ्रमपूर्ण ग्रंथों को रचकर समाज का पतन किया है l इसी में पड़कर संसार के सारे लोगों के विवेक-विचार नष्ट हो गए हैं l कोई अपनी स्थिति को नहीं प्राप्त हुआ l
हर समय में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो बुद्धि के सागर, प्रतिभा के धनी, विद्वान, चतुर, ज्ञान में पारगत एवं समाज को समझने में दक्ष होते हैं l परंतु वे स्वयं कुपथगामी होते हैं l वे विद्या-बुद्धि, धर्म एवं परमार्थ की आड़ में सांसारिक भोगों एवं ऐश्वर्यों को भोगने की इच्छा वाले होते हैं l इसलिए वे दूसरे के साथ छल करते हैं l वे मानो जनता के ज्ञानधन एवं मानवीय गुणों की चोरी करते हैं l वे समाज को गलत दिशानिर्देश करते हैं l वे अपने आप के विषय में प्रचारित करते हैं कि हम भगवान या भगवान के अवतार या पूर्व महापुरुषों के अवतार या ईश्वर के पैगंबर है l वे अपने आप को समाज में चमत्कारिक रूप में प्रचारित करते या करवाते हैं l चमत्कार, जो केवल एक छलावा है, इसके वे बड़े प्रेमी होते हैं l वे झूठे चमत्कारों से अपने आप को मंडित करते और करवाते हैं l वे मानव की बुद्धि का शोषण करते हैं l वे मानव के विवेक को चुराते हैंl जो विश्व के शाश्वत नियम हैं, कारण-कार्य-व्यवस्था है, प्रकृति के गुण-धर्म हैं, उनको वे झुठलाते हैं और भ्रमजनित बातें संसार में फैलाकर, समाज को सदैव बेवकूफ बनाये रखना चाहते हैं l
वे प्रचारित करते हैं कि उनके प्रताप से मुर्दा जी जाता है, सूखे काठ हरे हो जाते हैं, पत्थर की सिल्ली बढ़ जाती है, पानी घी हो जाता है, नदी सूख जाती है, बांझ को पुत्र हो जाता है, अंधे को आंखें तथा कोढ़ी को सुंदर काया मिल जाती है, एक-दो खुराक भोजन में हजारों लोग पेट भर के खा लेते हैं, सारी ऋद्धि-सिद्धियाँ अचानक मिनटों में प्रकट हो जाती है l चूँकि वंचकों ने ऐसी-ऐसी बातों का प्रचार प्राचीनतम काल से किया है, इसलिए उन्हें ऐसी झूठी बातों को अपने जीवन से जोड़ने में सरलता रहती है l धर्म, भगवान तथा महात्मा के नाम पर जितना अधिक झूठ बोला जा सके उतना अधिक जनता को मूर्ख बनाया जा सकता है. धूर्त चमत्कारों की बात फैलाते हैं और मुर्ख उनमें फंसते हैं l ऐसे लोगों का त्याग दिखावा मात्र एवं पाखंड पूर्ण होता है l ऐसे लोगों को परमार्थ की आड़ में भोगों की लालसा होती हैl इसलिए वे भोग और योग को एक मानते हैं l वे अपने अनुगामियों को काफी छूट देते हैं जिससे उनका दल बढ़ता जाये l
" सारी दुनिया जहँडे गई, कोई ना लागा ठौर" उक्त-जैसे धोखे में पड़कर प्रायः सारा संसार भटक गया है l गुरुओं ने कोई-न-कोई अंधविश्वास अनुगामियों को पकड़ा दिया है और वे उसमें चिपककर अपनी विवेक-बुद्धि खो बैठे हैं l भटके हुए मनुष्यों को कहां ठौर लग सकता है !
स्वार्थी पूंजीपति जनता का आर्थिक शोषण करते हैं और धोखेबाज धार्मिक गुरु जनता का बौद्धिक शोषण करते हैं l जब कोई धार्मिक गुरु बताता है कि महात्मा या गुरु या भगवान की कृपा से पानी बरसता है, तब वह मनुष्य की बुद्धि का शोषण करता है l क्योंकि पानी बरसने के जितने कारण हैं, वे जड़प्रकृति के अपने नियम हैं l प्रकृति में जब उन नियमों का संयोग हो जाता है तब पानी बरसता है, अन्यथा नहीं बरसता l उसमें किसी देवी, देवता, भगवान, गुरु और महात्मा का कुछ भी वश नहीं है, अन्यथा अवर्षण तथा अतिवर्षण होते ही नहीं l परंतु पानी बरसने के कारण में भगवान, गुरु और महात्माओं को जोड़कर मनुष्य की बुद्धि को दिग्भ्रमित कर दिया जाता है l एक बार मनुष्य के मन में जब अंधविश्वास बैठा दिया जाता है, तब वह सोचने-विचारने की शक्ति से सदैव के लिए पंगु हो जाता है l फिर तो उससे सारी मूर्खतापूर्ण बातें मनवायी जा सकती हैं l अतएव ये जनता की विवेक-बुद्धि एवं मानवीय गुणों को चुराने वाले विपथगामी बुद्धि के सागर लोगों ने जनता का बड़ा अहित किया है l ये समाज के कीड़े हैं l ये मानव-समाज को खोखला बनाते हैं l इनके चक्कर में पड़कर संसार के लोग भटक गए हैं l अतएव इनसे सावधान होने की आवश्यकता है l
(बीजक-साखी - 108)
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